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Karnataka State Syllabus Class 10 Hindi रचना चित्र प्रस्ताव
Karnataka State Syllabus Class 10 Hindi रचना चित्र प्रस्ताव
1. चित्र देखकर कहानी रचिए और उसके लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।

शीर्षक : “ऑटो-चालक की ईमानदारी” अथवा “ईमानदार ऑटो-चालक”
कब्बनपेट में मुरलीधर नामक एक व्यक्ति है। उसका एक ऑटो है। वह प्रतिदिन ऑटो चलाकर अपना गुजारा करता है। मुरलीधर हमेशा अपने सवारियों से अच्छा बर्ताव करता है। किराए के लिए कभी किसी से वाद-विवाद नहीं करता।
आज वह मेजेस्टिक से राजाजीनगर जा रहा था। उसके ऑटों में एक पढ़ा लिखा बाबू सवार हुआ। उसके पास दो-तीन सामान थे। जब वह राजाजीनगर पहुंचा, तो गड़बड़ में दो सामान लेकर उतर गया और ऑटो-चालक को किराया देकर चला गया।
ज्योंही मुरलीधर ऑटो घुमा रहा था, तो उसे पता चला कि उस सवारी-बाबू ने अपना ब्रीफकेस ऑटो में ही छोड़ दिया है। तुरन्त वह पुलिस थाने पहुंचा और ब्रीफकेस देते हुए बोला – “राजाजीनगर के एक बाबू ने मेरे ऑटो में यह ब्रीफकेस छोड़ दिया है। कृपया आप इसे उन-तक पहुँचा दें।’ पुलिस अधिकारी ने ऑटो-चालक मुरलीधर की ईमानदारी पर प्रसन्नता जाहिर की और उसे कुछ समय वहीं रुकने को कहा।
पुलिस-विभाग ने सम्बन्धित सवारी-बाबू का पता लगाकर, उसे पुलिस-थाने बुलवाया। वह बेचारा अपने ब्रीफकेस के खो जाने से काफी चिंतित था। जब उसने थाने में अपना ब्रीफकेस तथा उस ऑटो-चालक को देखा, तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
पुलिस-अधिकारी ने थाने में मुरलीधर को कुर्सी पर बैठाकर, हार पहनाया और उसकी ईमानदारी के लिए उसकी प्रशंसा की। जिसका ब्रीफकेस था, उसे ब्रीफकेस वापस लौटाया गया। उस बाबू ने भी ऑटो-चालक की भूरी-भूरी प्रशंसा की। खुशी से उसने मुरलीधर को पाँच सौ रुपये का पुरस्कार दिया। पहले तो वह लेने के लिए तैयार नहीं था, परन्तु पुलिस अधिकारी के आग्रह के बाद पुरस्कार प्राप्त किया। कितना अच्छा हो, बेंगलूर के सभी ऑटो-चालक मुरलीधर की तरह ईमानदार बने।
2. चित्र देखकर एक कहानी रचिए और उसके लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।

शीर्षक : बाल-हठ।
कहते हैं बच्चे बड़े हटवादी होते हैं। उठने, बैठने, खाने-पीने, नहाने, सोने आदि के लिए भी बच्चों का हठ माता को बड़ा ही परेशान करनेवाला होता है। फिर भी माता बेचारी बच्चों का पालन-पोषण बड़े ही मनोयोग से करती है।
एक दिन की बात है। रागिनी अपने पुत्र मनोहर को भोजन कराना चाहती थी। मनोहर मात्र किसी भी हालत में भोजन करने के लिए तैयार नहीं है। रागिनी उसे जैसे-तैसे समझाने की कोशिश करती है, पर मनोहर टस-से-मस नहीं होता। वह हाथ-पैर पटकता है, रोता है, चिल्लाता है; पर खाता कुछ नहीं। रागिनी गाना गाती है, खिलौना दिखाती है, गेंद देती है; फिर भी मनोहर एक कौर भी खाने को तैयार नहीं।
रागिनी प्रति दिन की भाँति आज भी प्रांगण में आ गई। आकाश में चाँद दिखाई दिया। उसने मनोहर से कहा – “देखो, चंदामामा! कितना अच्छा लग रहा है।” सुनते ही मनोहर ने रोना बंद कर दिया। फिर रागिनी गाने लगी – “चंदा आ जा रे, मेरे मन्नु को खिला जा रे, चंदा आ जा रे।’ कहते-कहते मनोहर को खिचड़ी खिलाने लगी और मनोहर भी अब धीरे-धीरे एक-एक कौर ‘चंदा’ की ओर देखते हुए खाने लगा। यह क्रम कुछ समय चलता रहा। इस प्रकार बच्चों के हठ को मिटाने की कोशिश करनी पड़ती है।
3. चित्र देखकर एक कहानी रचिए और उसके लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।

शीर्षक : साहसी बालक
एक विशाल बगीचा था। बगीचे की सारी जमीन हरी-भरी थी। फूलों की खुशबू व पक्षियों के चहचहाने से तो लोगों की तबीयत और खुश हो जाती थी। इसीलिए लोग रोज शाम को अपने बीवीबच्चों के साथ वहाँ आते थे और घंटों बैठकर आनंद लूटकर जाते थे।
एक दिन बगीचे में दस बरस का एक गरीब बालक भीख माँग रहा था। वह फटे-पुराने कपड़े पहने हुए था। वह अपनी आँखों में निराशा को भरकर इधर-उधर घूम रहा था। वह लोगों के पास जाता था। उनके सामने हाथ फैला देता था। कोई मुश्किल से दस बीस पैसे उसके सामने फेंकता तो कोई उसे खूब डाँट-फटकार कर भगा देता।
बगीचे में एक दम्पति अपनी छोटी बच्ची के साथ खेल रहे थे। बालक ने उनके पास भी जाकर हाथ फैला दिया। पर उन्होंने उसे पैसे नहीं दिये, बदले में उसे डाँटकर सामने से भगा दिया। बालक निराश होकर थोड़ी दूर जाकर बैठ गया, और उस बच्ची का खेल देखने में आनंद-मग्न हो गया।
उसी समय कहीं से एक जहरीला साँप आया। वह उस बच्ची की तरफ़ बढ़ने लगा। उसे बालक ने देख लिया। एक क्षण वह सहम गया, फिर तुरंत साँप! साँप! कहकर चिल्लाता हुआ, वहाँ से उठकर साँप की ओर दौड़ा। उसने एक बड़ा पत्थर साँप के सिर पर दे मारा। साँप की गति एकदम मंद हो गयी, वह वही पड़ा-पड़ा तड़पने लगा।
इतने में उस बच्ची के माँ-बाप और दूसरे लोग भी वहाँ आ गये। उस बच्ची के माँ-बाप बहुत घबराये हुए थे। उन्होंने बच्ची को उठाकर गहरी सांस ली और उसे बार-बार चूमने लगे।
अब सबकी नजर उस गरीब बालक पर पढ़ी, जिसने उस बच्ची की जान बचायी थी। सभी उसकी बहादुरी की प्रशंसा करने लगे। उस दम्पति के मन में उसके प्रति सहानुभूति पैदा हो गई और उन्होंने उसकी पीठ थपथपायी, उसकी तारीफ़ की। बाद में उस बच्ची के पिता ने जेब से सौ रुपयों का नोट निकालकर उस बालक के हाथ में रख दिया।
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